योग मुद्रायें कैसे करती है लाभ
मुद्रा का अर्थ है शरीर के हाव भाव
योग -आसन और प्राणायाम के मेल से बनता है।
ऋषि मुनियो द्वारा मुद्राओ को आसनो का एक रूप माना गया है , इन्हे आयुर्वेद के अनुसार आरोग्य का धन भी माना गया है।
पुराने समय में योगी-मुनि कुण्डलिनी को जागरण के लिए योग-आसन और प्राणायाम के साथ -साथ योग मुद्राओं का अभ्यास करते थे और ध्यान और समाधी की अवस्था को प्राप्त करते थे।
मुद्राओं से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की शक्तियों का विकास होता हैं। आसन द्वारा जहाँ शरीर बलिष्ठ होता है ,वही मुद्राओं के नियमित अभ्यास द्वारा कई तरह के रोग दूर होते हैं,मन की चंचलता दूर होती है हम मानसिक रूप से बलिष्ठ और सशक्त होते है और ध्यान की अवस्था को प्राप्त करते थे।
क्योंकि योग आसन करते समय इन्द्रियों की भूमिका ज्यादा और प्राणों की कम होती है।
जबकि मुद्राओं करते समय इन्द्रियों की भूमिका कम होती है ,और प्राणों की ज्यादा होती है।
नित्य की दिनचर्या में भी हम अपने शरीर और मन को स्वस्थ रखने के लिए इन क्रियाओं का अभ्यास कर सकते हैं। इसमें हाथों की उँगलियों को सपर्श करके आंतरिक शक्ति से प्राणों का संचार करके शरीर को स्वस्थ किया जाता है।
हमारा शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है–
जब ये पाँचों तत्व सामान्य अवस्था में विद्यमान रहते हैं तो हम निरोगी रहते है और यदि इनका संतुलन बिगड़ जाये तो शरीर ,में रोग उत्पन्न हो जाते हैं।नियमित दिनचर्या में इन मुद्राओं द्वारा हम अपने शरीर का संतुलन बनाए रख सकते है
आइये जाने हाथ की पांच उंगलियाँ पांचो तत्वों का प्रतिनिधित्व इस तरह करती है —
फीविलेमेंटसीनोरह
- अंगूठा : अग्नि
- तर्जनी : वायु
- बीच वाली ऊँगली : आकाश
- अनामिका : पृथ्वी
- छोटी ऊँगली : जल
आयुर्वेद में मुख्य रूप से 11 तरह की मुद्राएँ बताई गई हैं—-
हमारे अन्य लेखों में इन मुद्राओं के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया है।