छठ पूजा Chhath Puja 2018
भारत में सूर्य को भगवान मानकर उनकी उपासना करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से चली आ रही है। सूर्य और उनकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गई है। रामायण में माता सीता द्वारा छठ पूजा किए जाने का वर्णन है। वहीं, महाभारत में भी इससे जुड़े कई तथ्य हैं। मध्यकाल तक छठ व्यवस्थित तौर पर पर्व के रूप में प्रतिष्ठा पा चुका था, जो आज तक चला आ रहा है।
दशहरा और दीपावली धूमधाम से मनाने के बाद अब महान लोकपर्व छठ पूजा के कार्यक्रम शुरू हो गए हैं। शास्त्रों में सूर्यषष्ठी नाम से बताए गए चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत को पूर्वांचल यानी पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और नेपाल की तराई में खासतौर पर मनाया जाता है।
महापर्व छठ 2018
लोक आस्था का महापर्व छठ का आरंभ 11 नवम्बर 2018 को नहाय-खाय से शुरू होकर 14 नवंबर को समाप्त होगा। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक चलने वाला यह चार दिन का पर्व खाए नहाय के साथ शुरू होता है। तड़के महिलाएं नदियों और तालाबों के तट पर जुट जाती हैं। इस साल छठ 11 नवम्बर को नहाय खाए से शुरु हो रहा है। 12 नवम्बर को खरना मनाया जाएगा। इसके बाद छठ व्रती 13 नवम्बर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगी और 14 नवंबर को सुबह का अर्घ्य देने के बाद अरुणोदय में सूर्य छठ व्रत का समापन किया होगा। आईए जानते हैं इस चार दिन के पर्व के हर दिन के महत्व के बारे में…
पहला दिन
खाए नहाय, छठ पूजा व्रत का पहला दिन इस दिन नहाने खाने की विधि की जाती है। इस दिन स्वयं और आसपास के माहौल को साफ सुथरा किया जाता है। लोग अपने घर की सफाई करते हैं और मन को तामसिक भोजन से दूर कर पूरी तरह शुद्ध शाकाहारी भोजन ही लेते हैं।
दूसरा दिन
खरना, छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। इस दिन खरना की विधि की जाती है. खरना का मतलब है पूरे दिन का उपवास. व्रती व्यक्ति इस दिन जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करता. शाम होने पर गन्ने का जूस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर बांटा जाता है।
तीसरा दिन
इस दिन शाम का अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य षष्ठी को छठ पूजा का तीसरा दिन होता है। आज पूरे दिन के उपवास के बाद शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। मान्यता के अनुसार शाम का अर्घ्य के बाद रात में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा भी सुनी जाती है।
चौथा दिन
छठ पर्व के चौथे और अंतिम दिन सुबह का अर्घ्य दिया जाता है। आज के दिन सुबह सूर्य निकलने से पहले ही घाट पर पहुंचना होता है और उगते सूर्य को अर्घ्य देना होता है। अर्घ्य देने के बाद घाट पर छठ माता से संतान-रक्षा और घर परिवार के सुख शांति का वर मांगा जाता है। इस पूजन के बाद सभी में प्रसाद बांट कर फिर व्रती खुद भी प्रसाद खाकर व्रत खोल लेते हैं।
छठ पूजा कथा
बहुत समय पहले, एक राजा था जिसका नाम प्रियब्रत था और उसकी पत्नी मालिनी थी। वे बहुत खुशी से रहते थे किन्तु इनके जीवन में एक बहुत बचा दुःख था कि इनके कोई संतान नहीं थी। उन्होंने महर्षि कश्यप की मदद से सन्तान प्राप्ति के आशीर्वाद के लिये बहुत बडा यज्ञ करने का निश्चय किया। यज्ञ के प्रभाव के कारण उनकी पत्नी गर्भवती हो गयी। किन्तु 9 महीने के बाद उन्होंने मरे हुये बच्चे को जन्म दिया। राजा बहुत दुखी हुआ और उसने आत्महत्या करने का निश्चय किया।
अचानक आत्महत्या करने के दौरान उसके सामने एक देवी प्रकट हुयी। देवी ने कहा, मैं देवी छठी हूँ और जो भी कोई मेरी पूजा शुद्ध मन और आत्मा से करता है वह सन्तान अवश्य प्राप्त करता है। राजा प्रियब्रत ने वैसा ही किया और उसे देवी के आशीर्वाद स्वरुप सुन्दर और प्यारी संतान की प्राप्ति हुई। तभी से लोगों ने छठ पूजा को मनाना शुरु कर दिया।
छठ पूजा के लाभ
- यह माना जाता है कि त्यौहार पर उपवास और शरीर की साफ-सफाई तन और मन को विषले तत्वो से दूर करके लौकिक सूर्य ऊर्जा को स्वीकार करने के लिये किये जाते है।
- आधे शरीर को पानी में डुबोकर खडे होने से शरीर से ऊर्जा के निकास को कम करने के साथ ही सुषुम्ना को उन्नत करके प्राणों को सुगम करता है।
- तब लौकिक सूर्य ऊर्जा रेटिना और ऑप्टिक नसों द्वारा पीनियल, पीयूष और हाइपोथेलेमस ग्रंथियों (त्रिवेणी परिसर के रूप में जाना जाता है) में जगह लेती है।
- चौथे चरण में त्रिवेणी परिसर सक्रिय हो जाता है।
- त्रिवेणी परिसर की सक्रियता के बाद, रीढ़ की हड्डी का ध्रुवीकरण हो जाता है और भक्त का शरीर एक लौकिक बिजलीघर में बदल जाता है और कुंडलिनी शक्ति प्राप्त हो जाती है।
- इस अवस्था में भक्त पूरी तरह से मार्गदर्शन करने, पुनरावृत्ति करने और पूरे ब्रह्मांड में ऊर्जा पर पारित करने में सक्षम हो जाता है।