कोई भी योग मुद्रा करने से पहले शरीर और मन एक शांत होना आवश्यक है इसलिए सुखासन में बैठेमन शांत कर ले ।
अब अपनी छोटी ऊँगली को मोड़कर अंगूठे की मूल से लगा ले। अंगूठे से छोटी ऊँगली के मध्य भाग को हलके से दबाये।बाकि की तीनो उँगलियाँ सीधी रखे। यह मुद्रा जलोदर नाशिनी मुद्रा कहलाती है।
इस मुद्रा का अभ्यास नित्य सुबह खाली पेट सुखासन में बैठकर 30 मिनट तक करे व इस मुद्रा को दोनो हाथो से ही लगाये। (रोग या बीमारी के दूर करने के लिए नियमित अभ्यास अवश्य करे। इसका असर धीमी गति से होता है परन्तु रोग जड़ से समाप्त हो जाता है। )
जलोदर नाशिनी मुद्रा के लाभ
- इस मुद्रा से शरीर का जल तत्व घटता है, जल की अधिकता से होने वाले रोग नष्ट हो जाते है।
- यदि नाक या आँखों से पानी आने लगे, नजला जुकाम हो , छाती से बलगम की समस्या हो जाये, तब उसके लिए यह मुद्रा लाभकारी है।
- फेफड़ों में पानी को कम करने में भी यह मुद्रा लाभकारी है।
- यदि किसी व्यक्ति के पेट में यदि पानी भर गया हो, तो यह मुद्रा जल को सुखा में सहायता करती है।
- फेफड़ो में यदि पानी भर गया हो या शरीर में कहि भी पानी भर गया हो या पानी भरने से सूजन आ गई हो उसके लिए यह मुद्रा लाभकारी है।
- यदि हाथी पांव (पैर का हाथी की तरह फूल जाना ) हो जाये, उसके लिए यह मुद्रा लाभकारी है।
- थकान दूर होती है।
- एसिडिटी दूर होती है।
- भूख प्यास पर अधिक समय तक नियंत्रण हो पाता है।
- शरीर की कमजोरी दूर होती है व्यक्ति पुनः सबल हो जाता है।
- हाथों पैरों या चेहरे अपर आई सूजन दूर होती है।
- लकवे के कारण खोई हुई ऊर्जा इस मुद्रा के अभ्यास से पुनः प्राप्त की जा सकती है।
- इस मुद्रा से गर्मियों में भी बहुत लाभ मिलता है इस मुद्रा को लगाने से लूं नही लगती है।
- इस मुद्रा को लगाने से हमारा शरीर को विषाक्त पदार्थ से मुक्ती मिल जाती है।
अतः यह मुद्रा शारीरिक मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास में सहायक होती है।
कृपया ध्यान दें उपलब्ध सभी साम्रगी केवल पाठकों की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए दी गई है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें।
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