गोवर्धन पूजा 20 अक्टूबर 2017
बचाने को जीवन लोगों का, उँगली पे था पहाड उठाया
जिसकी शरणमें आकर भक्तों ने, नया जीवन था पाया
उसी कन्हैया की याद दिलाने, फिर से गोवर्धन है आया
गोवर्धन पर्व प्रत्येक वर्ष दिपावली के एक दिन बाद मनाया जाता है। वर्ष 2017 में यह् पर्व 20 अक्टूबर, कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जायेगा। गोवर्धन पूजा के दिन ही अन्नकूट पर्व भी मनाया जाता है। दोनों पर्व एक दिन ही मनाये जाते है, और दोनों का अपना- अपना महत्व है। गो वर्धन पूजा विशेष रुप से श्री कृ्ष्ण की जन्म भूमि या भगवान श्री कृ्ष्ण से जुडे हुए स्थलों में विशेष रुप से मनाया जाता है।
कृ्ष्ण की जन्म स्थली बृ्ज भूमि में गोवर्धन पर्व को मानवाकार रुप में मनाया जाता है। यहां पर गोवर्धन पर्वत उठाये हुए, भगवान श्री कृ्ष्ण के साथ साथ उसके गाय, बछडे, गोपिया, ग्वाले आदि भी बनाये जाते है, और इन सबको मोर पंखों से सजाया जाता है। इसमें मथुरा, काशी, गोकुल, वृ्न्दावन आदि में मनाया जाता है। इस दिन घर के आँगन में गोवर्धन पर्वत की रचना की जाती है और गोवर्धन देव से प्रार्थना कि जाती है कि पृ्थ्वी को धारण करने वाले हे भगवन आप गोकुल के रक्षक है, भगवान श्री कृ्ष्ण ने आपको अपनी भुजाओं में उठाया था, आप मुझे भी धन-संपदा प्रदान करें। यह दिन गौ दिवस के रुप में भी मनाया जाता है। एक मान्यता के अनुसार इस दिन गायों की सेवा करने से कल्याण होता है। जिन क्षेत्रों में गाय होती है, उन क्षेत्रों में गायों को प्रात: स्नान करा कर, उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल-मालाओं से सजाया जाता है।
गोवर्धन पर्व पर विशेष रुप से गाय-बैलों को सजाने के बाद गोबर का पर्वत बनाकर इसकी पूजा की जाती है। गोबर से बने, श्री कृ्ष्ण पर रुई और करवे की सीके लगाकर पूजा की जाती है। गोबर पर खील, बताशे ओर शक्कर के खिलौने चढाये जाते है । मथुरा-वृंन्दावन में यह उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। सायंकाल में भगवान को छप्पन भोग का नैवैद्ध चढाया जाता है।
गोवर्धन पूजा कथा
Story of Govardhan Puja
गोवर्धन पूजा के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है। जब भगवान श्री कृ्ष्ण अपनी गोपियों और ग्वालों के साथ गायं चराते थे। गायों को चराते हुए श्री कृ्ष्ण जब गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे तो गोपियां 56 प्रकार के भोजन बनाकर बडे उत्साह से नाच-गा रही थी। पूछने पर मालूम हुआ कि यह सब देवराज इन्द्र की पूजा करने के लिये किया जा रहा है। देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर हमारे गांव में वर्षा करेगें, जिससे अन्न पैदा होगा, इस पर भगवान श्री कृ्ष्ण ने समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत है, जो हमारी गायों को भोजन देते है.ब्रज के लोगों ने श्री कृ्ष्ण की बात मानी और गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी। जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग मेरी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे है, तो उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। इन्द्र क्रोधित हुए और उन्होने ने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर खूब बरसे, जिससे वहां का जीवन अस्त-व्यस्त हो जायें।
अपने देव का आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगें. ऎसी बारिश देख कर सभी भयभीत हो गयें. ओर दौड कर श्री कृ्ष्ण की शरण में पहुंचें, श्री कृ्ष्ण से सभी को गोवर्धन पर्व की शरण में चलने को कहा. जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगूली पर उठा लिया. सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गयें. ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा. यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ. और वे श्री कृ्ष्ण से क्षमा मांगने लगें. सात दिन बाद श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजबादियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा. तभी से यह पर्व इस दिन से मनाया जाता है.
अन्नकूट पर्व
Annakut Festival
अन्नकूट पर्व भी गोवर्धन पर्व से ही संबन्धित है. इस दिन 56 प्रकार की सब्जियों को मिलाकर एक भोजन तैयार किया जाता है, जिसे 56 भोग की संज्ञा दी जाती है. यह पर्व विशेष रुप से प्रकृ्ति को उसकी कृ्पा के लिये धन्यवाद करने का दिन है. इस महोत्सव के विषय में कहा जाता है कि इस पर्व का आयोजन व दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को अन्न की कमी नहीं होती है. उसपर अन्नपूर्णा की कृ्पा सदैव बनी रहती है.
अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन है. इसमें पूरे परिवार, वंश व समाज के लोग एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पन करने के बाद प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते है. काशी के लगभग सभी देवालयों में कार्तिक मास में अन्नकूट करने कि परम्परा है. काशी के विश्वनाथ मंदिर में लड्डूओं से बनाये गये शिवालय की भव्य झांकी के साथ विविध पकवान बनाये जाते है.